अनुयोज्य दावा (Actionable Claim) - अनुयोज्य दावा (Actionable Claim) - अनुयोज्य दावा धारा 3 में परिभाषित है तथा अध्याय 8 (धारा 130 से 137)अनुयोज्य दावे के अंतरण के बारे में प्रावधान करता है | दावा से तात्पर्य अधिकार से है तथा एक ऐसा दावा या अधिकार जो अनुयोज्य हो अर्थात न्यायालय में कार्यवाही के योग्य हो उसे अनुयोज्य दावा कहते हैं | अधिनियम की धारा 3 में जो अनुयोज्य दावा की परिभाषा दी गई है, उसका तात्पर्य निम्न से है – 1 – एक अप्रतिभूति ऋण 2 – चल सम्पति में लाभप्रद हित 1-एक अप्रतिभूति ऋण (Unsecured Debt) - अप्रतिभूति ऋण से तात्पर्य किसी सादे ऋण या ऐसे ऋण से है जिसके लिए कोई प्रतिभूति (Security) नहीं दी गई है I यह अचल सम्पति के बंधक या चल सम्पति के आडमान या गिरवी (Pledge or Hypothecation) से भिन्न होता है I चूँकि अनुयोज्य दावा एक ऋण है, अतः इसकी राशि निश्चित होती है इसलिए अनिश्चित धनराशि का दावा अनुयोज्य दावा नहीं हो सकता | यह भी आवश्यक है कि न्यायालय अनुतोष देने के योग्य समझता हो | 2-चल सम्पति में लाभप्रद हित (Beneficial Interest in Movable Property) - अनुयोज्य दावा चल सम्पति में लाभप्रद हित भी होता है परन्तु ऐसी सम्पति दावेदार के कब्जे में न हो | यह भी आवश्यक है की इसे दीवानी न्यायालय अनुतोष प्रदान करने योग्य समझता हो | धारा 3 के अनुसार ऐसा ऋण या लाभप्रद हित वर्तमान प्रोद्भवमान ( भविष्य में होने वाला ) सशर्त तथा समाश्रित हो सकता है | इस प्रकार स्पष्ट है कि अनुयोज्य दावा वह अधिकार है, जिसके द्वारा कोई व्यक्ति दीवानी न्यायालय में वाद संस्थित करके निम्नलिखित चीजों को प्राप्त कर सकता है - 1 – की गई सेवाओं के लिए पारिश्रमिक जैसे – ट्यूशन के लिए फीस प्राप्त करना | 2 – अप्रतिभूति या सादा ऋण | 3 – ऐसी चल सम्पति जो कुछ समय के लिए दी गई हो या लाभप्रद हित | उदाहरण – निम्नलिखित अनुयोज्य दावा माने गए है – 1 – बकाया किराया या भविष्य में देय होने वाले किराये का दावा I 2- संविदा (निष्पादित/निष्पाद्य) से होने वाले लाभ का दावा | 3 – फर्म में भागीदारी का दावा | 4- मुस्लिम महिला का अदत्त मेहर का दावा | 5 – जीवन बीमा से लगाई गई धनराशि का दावा | 6 – भविष्य निधि का दावा | 7 – ऐसी सेवायें जिनके बदले पैसा या सम्पति मिलती हो | 8 – लाटरी का इनाम पाने का दावा | निम्नलिखित अनुयोज्य दावा नहीं माने गए है – 1 – मध्यवर्ती लाभ का दावा | 2 – डिक्री का दावा | 3 – कॉपीराइट का दावा | 4- - कम्पनी के अंश | 5 – बंधक ऋण | 6 – गिरवी | 7 – प्रतिकर प्राप्त करने का अधिकार | 8 – परक्राम्य लिखत ( चेक , वचनपत्र , विनिमयपत्र ) |9 – सह हिस्सेदार से लाभ वसूलने का अधिकार | अनुयोज्य दावे का अंतरण (अध्याय 8, धारा 130 से 137 )(Transfer of Actionable Claims) - अंतरण का तरीका (धारा 130) – धारा 130 के अनुसार अनुयोज्य दावे का ऐसा अंतरण लिखत के निष्पादन द्वारा हो सकता है, चाहे ऐसा अनुयोज्य दावा प्रतिफल सहित हो या प्रतिफल रहित | लिखत अंतरणकर्ता या उसके द्वारा प्राधिकृत अभिकर्त्ता द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा जैसे ही लिखत का निष्पादन हो जाता है, अनुयोज्य दावे का अंतरण पूर्ण और प्रभावी हो जाता है तथा इसके पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती | अंतरण का प्रभाव (धारा 130-132) (Effect of Assignment) – अनुयोज्य दावे के अंतरण का निम्नलिखित प्रभाव होता है – अंतरणकर्ता के उस सम्पति में संपूर्ण अधिकार तथा उपचार चाहे वे हानि के हो या अन्यथा हो, अंतरिती में निहित हो जायेंगे भले ही अंतरण की सूचना धारा 121 के अनुसार ऋणी को दी गई हो या नहीं | अंतरणकर्ता अपना हित ऋण में खो देगा तथा उसे प्राप्त करने के लिए अपने नाम से वाद नहीं ला सकेगा अंतरिती अंतरणकर्ता की सम्मति प्राप्त किये बिना तथा उसको पक्षकार बनाये बिना स्वंय अपने नाम से ऋणी पर वाद ला सकेगा या कार्यवाही कर सकेगा | धारा 132 के अनुसार, अनुयोज्य दावे का अंतरिती अंतरणकर्ता तथा ऋणी के मध्य में जो भी दायित्व तथा सबूत अंतरण के समय अस्तित्व में है, अंतरण के साथ साथ उन्हें भी प्राप्त करेगा | अंतरण की सूचना (धारा 131) (Notice of Assignment) - अनुयोज्य दावे के अंतरण में आवश्यक पक्षकार नहीं होगा | अंतरण का संव्यवहार अंतरणकर्ता तथा अंतरिती के मध्य ही सम्पादित होता है | जब अनुयोज्य दावे का अंतरण प्रभावी हो जाता है, तब अंतरिती ऋण का भुगतान उसे ही करने के लिए ऋणी से कह सकता है या उसकी वसूली के लिए ऋणी के विरुद्ध वाद संस्थित कर सकता है | यदि अंतरण के पश्चात ऋणी ने ऋण का भुगतान अंतरणकर्ता को कर दिया है तो ऐसी स्थिति में अंतरिती ऋणी को उसे पुनः भुगतान करने के लिए नहीं कह सकता क्योंकि अंतरण का प्रभाव ऋणी पर नहीं पड़ता है I ऐसी स्थिति को रोकने के लिए जितना जल्दी हो सके अनुयोज्य दावे के अंतरण की सूचना ऋणी को दे दी जानी चाहिए | यदि सूचना के पश्चात ऋणी ऋण का भुगतान अंतरणकर्ता को कर देता है तो उसके पुनः भुगतान के लिए अंतरिती उसे बाध्य नहीं कर सकता I उदहारण – ‘ख’ का ‘क’ देनदार है ‘ख’ वह ऋण ‘ग’ को अंतरित कर देता है तब ‘क’ से ऋण को चुकाने के लिए ‘ख’तकाजा करता है | अंतरण की ‘क’ को धारा 131 में यथा विहित सूचना नही मिली है और वह ‘ख’ को संदाय कर देता है | यह संदाय विधिमान्य है और ‘ग’ उस ऋण के लिए ‘क’ पर वाद नहीं ला सकता | धारा 131 के अनुसार अनुयोज्य दावे के अंतरण की सूचना लिखित होगी और अन्तरक या इस निमित्त सम्यक रूप से प्राधिकृत उसके अभिकर्त्ता द्वारा हस्ताक्षरित होगा यदि अंतरणकर्ता हस्ताक्षर करने से इंकार करता है तो ऐसी दशा में अंतरिती या उसका अभिकर्त्ता हस्ताक्षर करेगा | सूचना में अंतरिती का नाम और पता भी दिया जायेगा | इस प्रकार धारा 131 से स्पष्ट है कि ऋणी को अनुयोज्य दावे के अंतरण के संव्यवहार की सूचना का प्रथम दायित्व अंतरणकर्ता का होता है तथा उसके इन्कार करने पर अंतरिती का होता है | अपवाद - धारा 130 निम्नलिखित पर लागू नहीं होती है – 1 – समुद्री बीमा 2 – अग्नि बीमा 3 – बीमा अधिनियम 1938 की धारा 38 4 – धारा 136 के अनुसार न्यायाधीश, विधि व्यवसायी तथा न्यायालय से सम्बन्धित अधिकारी अनुयोज्य दावे का अंतरण किसी भी रूप में करा सकता | 5 – धारा 137 के अनुसार स्टॉक,अंशो, डिवेंचरो, परक्राम्य लिखतो तथा माल पर हक़ के वाणिज्यिक दस्तावेज पर अध्याय 8 लागू नहीं होती है |