संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 122 के अंतर्गत "दान " किसे कहते है? एक दान वैध दान कब होता है और वैध दान के आवश्यक तत्व क्या है ? " संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 122 के अंतर्गत "दान " की परिभाषा दी गयी है और एक दान वैध दान कब होता है संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 122 में दान की परिभाषा कुछ इस प्रकार से दी गयी है कि, जब कोई व्यक्ति अपनी चल या अचल स्थावर संपत्ति का अंतरण अपनी स्वेछा से बिना किसी प्रतिफल के करता है, तो ऐसे अंतरण को जो की स्वेछा से किया गया है जिसमे कोई प्रतिफल का शामिल न होना "दान "दान कहा जायेगा। "प्रतिफल " से मतलब यह की किसी एक वस्तू के बदले में दूसरी वस्तु का लेना। दान में दो पक्षों का होना आवश्यक है। दाता :- दान देने वाले व्यक्ति को दाता /दानकर्ता दोनों नमो जाना जाता है। आदाता :- दान लेने वाले व्यक्ति को आदाता कहा जाता है जो की दान की स्वीकृति करता है। या दान की संपत्ति आदाता की ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा स्वीकार किया है। दान के सम्बन्ध में एक बात ध्यान रखने योग्य यह की दान में मिल रही चल या अचल स्थावर संपत्ति की स्वीकृति दानकर्ता के जीवन काल के दौरान या उस समयावधि के भीतर की जानी आवश्यक ह, जब तक दानकर्ता दान देने लिए सक्षम है। एक दान वैध दान कब होता है और वैध दान के आवश्यक तत्व क्या है ? दाता :- दाता से आशय उस व्यस्क व्यक्ति से है जो की जो की दान देने में सक्षम है और अपनी चल या अचल सम्पत्ति का अंतरण अपनी स्वेछा से करता है, उस व्यक्ति को दाता या दानकर्ता कहा जायेगा। आदाता :- आदाता से आशय उस निश्चित व्यक्ति से है, जिसको दान दिया जाना है या जिसको दान दिया गया है या वह व्यक्ति जो की आदाता की ओर से दान स्वीकार करता है या जिसके द्वारा दान का स्वीकार किया जाना है। वह व्यक्ति आदाता कहा जायेगा। प्रतिफल का अभाव :- एक वैध दान का आवश्यक तत्व यह भी है की, दान में प्रतिफल का आभाव होना जरुरी है। प्रतिफल का आभाव होने से मतलब यह की जब भी किसी चल या अचल सम्पति का दान किया जाये तो वह दान प्रतिफल के बिना हो, दान के बदले किसी अन्य वस्तु की मांग न की जाये। स्वेछा :- दान के लिए यह आवश्यक है, कि स्वेछा से दिया गया हो न की किसी के दबाव में आकर। यदि कोई व्यक्ति अपनी चल या अचल स्थावर सम्पति का दान किसी जोर दबाव में आकर करता है, तो वह दान एक शून्य दान होगा। विषय वस्तु :- दान के लिए विषय वस्तु का होना बहुत आवश्यक है। विषय वस्तु ऐसी चल या अचल स्थावर सम्पति हो सकती है जो की निश्चित हो और ऐसी सम्पत्ति का अस्तित्व में होना आवश्यक है। दान में दी जाने वाले सम्पत्ति का वर्तमान में अस्तित्व होना जरुरी है भावी सम्पत्ति का दान शून्य होगा। अंतरण :- दान में अंतरण एक मत्वपूर्ण तत्व होता है, दानकर्ता जब भी अपनी कोई चल या अचल स्थावर सम्पति का दान करता है, तो दान की जाने वाली सम्पति दानलेने वाले व्यक्ति के नाम सम्पूर्ण अधिकारों को अंतरित कर दे। स्वीकृति :-दानकर्ता द्वारा दान में दी गयी संपत्ति की स्वीकृति दानलेने वाले व्यक्ति द्वारा की जानी आवश्यक है। यदि दानकर्ता ऐसा दान किसी बालक को करता है, जो की दान लेने में असक्षम, तो ऐसे दान की स्वीकृति उस बालक के संरक्षक के द्वारा की चाहिए। दान की स्वीकृति दानकर्ता के जीवनकाल के उस समय कर लेनी चाहिए जब दानकर्ता दान करने के लिए सक्षम है। एक बात ध्यान रखने योग्य यह कि जब दानकर्ता अपनी सम्पत्ति का दान करता है और दान लेने वाला व्यक्ति दान के प्रति अपनी स्वीकृत देने से पहले मर जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो ऐसे में दानकर्ता के द्वारा किया गया दान शून्य हो जाता है।